धनक -THE RAIN BOW

जीवन अनेक रंगों में रंगा मिलता है ;जीवन रंगो में रंगे धनक को सुधि पाठकों के लिए समर्पित करता हूँ ; धन्यवाद DHANAK.THERAINBOW KITAB PAANAY KE LIYE SAMPRK KREIN 9814087063 EMAIL I.D. IS DHANAKTHERAINBOW @GMAIL.COM

26 March, 2012

...अच्छी बात नहीं


सब को दिल क़ा हाल सुनाना अच्छी बात नहीं 
सब को ही हमराज़ बनाना अच्छी बात नहीं 

जो हो ,सो ही बन के रहना दुनिया में अच्छा ;
व्यर्थ ही अपने गाल बजाना अच्छी बात नहीं .

नमक लिए फिरते हैं अपने हाथों में अब लोग ;
सब को दिल क़ा जख्म दिखाना  अच्छी बात नहीं  .

जो तुमको हमराज़ बनाए दिल की  बात   कहे ;
सब को उस की बात बताना  अच्छी बात नहीं  .

दिलबर एक बना लो उस पर कर दो सब कुर्बान ;
गली गली दिलदार बनाना  अच्छी बात नहीं  .

फूल में मंड राती तितली बैठी हो बैठने दो ;
फूल से तितली दूर हटाना अच्छी बात नहीं .

अभिसार समय आये तो खो जाना सब भूल के बस ;
करते रहना: जाना जाना; अच्छी बात नहीं .

नस नस में बहते ही जिस के रक्त बनें प्रियतम !
उन को हर दिन ही तडपाना;अच्छी बात नहीं .

प्रेम सुधाकर तुम हो प्रियतम जानते तुम भी हो 
जान के भी  बनना अनजाना;अच्छी बात नहीं ..

तेरे दर पर प्रेम के दीप जलाए बैठी हूँ 
प्रियतम प्रेम के दीप  बुझाना अच्छी बात नहीं 
दीप जीरवी 9815524600 .
25-3-12





25 March, 2012

... याद आता है .

किताबों  में गुलाबों का छिपाना याद आता है ;

गुलाबों सा हमें गुज़रा ज़माना याद आता है .

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झुकी मदमस्त गहरी कासनी आंखे तुम्हारी वो ;
उन आँखों से तेरा  मुझ  को , पिलाना याद आता है.
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मज़ा आता है कर कर याद सब  लम्हे सुहाने वो;
सुहाने साथ का उल्फत निभाना याद आता है .

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अदा से वो उठी पलकें झुका लेना हया मारे ;
औ धीरे धीरे फिर पलकें उठाना याद आता है .
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गनीमत है अभी पहरा ख्वाबों पे लगा   न  है ;
ख्यालों में तुम्हे अपना बनाना याद आता है .
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दीप जीरवी २५-३-12

07 March, 2012

वो होली क्या थी होली
ये होली अब क्या हो ली
वो होली जब जल अपने थे
जब रहन हुए न सपने थे
जब हरयाली थी हर घर में
मन-खुश-हाली थी हर घर में
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अब जन संसाधन रहन हुए
अब जल संसाधन रहन हुए
अब जल धन दे कर मिलता है
बाज़ार में जा कर मिलता है
वो होली क्या थी होली
ये होली अब क्या हो ली
दीप जीरवी
DEEP ZIRVI

नारी दिवस को समर्पित....

माता ममता रूप है ,बिटिया बहना प्यार ;
प्रेयसी अर्धांग्नी बने ,अपरिमित अनुराग ;
अपरिमित अनुराग ,स्नेह विश्वास अपारा
सकल चराचर जगत दिखे यह मात -अधारा ;
जगदीश्वर इस जगत को विविध स्वरूप दिखाता
सुख दायक मनभावन नारी रूप में आता
दीप ज़ीर्वी

03 March, 2012

भावी को ही सोचते चिन्तन करें अतीत

वर्तमान कन्चन करें,माटी मोल क्यों क्यों मीत.

माटी मोल क्यों मीत ,हुआ क्या और क्या होगा

अब के पल के लिए कभी क्या है कुछ सोचा ?

चिंता चूल्हे चन्दन सी काया क्यों डाली

अतीत गया है बीत ,अरे आती रहे भावी .

दीप जीरवी

वर्तमान में जी सखी ,पीड़ा देत अतीत

गुरुजन की वाणी कहे,'मन जीते जगजीत '

मन जीते जगजीत ,अमरवाणी को मान.

मन तू ज्योत स्वरूप है अपना मूल पहचान .

जीवन आग ही नहीं सखी री राग भी जीवन

जीना जीना है तो जी लें आज में जीवन .

दीप जीरवी

नाम रखा के दीप है जलना मेरा काम

आठ प्रहर में निमिष भर ,अब तो नहीं आराम .

अब तो नहीं आराम ,बिना दीदार सजन के .

मन मन्दिर में आन बढाई रे फबन ये .

रसना पर है हर घड़ी ,अब तो श्याम ही श्याम .

धक धक करना भूल ,स्पंदन जपते हैं प्रिय नाम

दीप जीरवी

होगा तो हर एक संग ,पीड़ा भरा अतीत ,

क्यों रोएँ हम उम्र भर ,करकर याद वो मीत ,

कर कर याद वो मीत ,आज में अब में जी लें ,

पीड़ा दे हजार मनवा में कल की कीलें .

वर्तमान में जी ,भावी निर्माण तो होगा

कल की कीलो के कारण,दर्द तो होता होगा .

दीप जीरवी

आंस्तीन में शूल और हाथों में धर फूल ;

मिलते हैं कुछ जगत में ऐसे लोग फ़िज़ूल .

ऐसे लोग फ़िज़ूल कपट में पी .एच .डी. जो ;

स्वार्थ सिद्दी विभाग के होते एच .ओ .डी वो .

सोचते मन में यह फंसें सब बस बातों में.

काठ की पुतली बने रहें इन के हाथों में .

दीप जीरवी

होंठों पर मुस्कान हैं ,ह्रदय बिरहा शूल ;

मिलते हैं कुछ जगत में प्रेम भाव के मूल .

ऐसे लोग हैं जगत में ,प्रेम भाव के मूल .

प्रेम भाव के मूल ,प्रेम गंगोत्री हैं यह .

यही धरा के सूर्य ,सितारे और दिवाकर .

ह्रदय बिरहा शूल जिन के मुस्कान होंठों पर

दीप जीरवी

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 होंठों पर मुस्कान हैं ,ह्रदय बिरहा शूल ;
मिलते हैं कुछ जगत में प्रेम भाव के मूल .
 
ऐसे लोग हैं जगत में ,प्रेम भाव के मूल .
प्रेम भाव के मूल ,प्रेम गंगोत्री हैं यह .
 
 
यही धरा के सूर्य ,सितारे और दिवाकर .
ह्रदय बिरहा शूल जिन के मुस्कान होंठों पर
दीप जीरवी
 
 
आंस्तीन में शूल और हाथों में धर फूल ;
मिलते हैं कुछ जगत में ऐसे लोग फ़िज़ूल .
ऐसे लोग फ़िज़ूल कपट में पी .एच .डी. जो ;
स्वार्थ सिद्दी विभाग के होते एच .ओ .डी वो .
 
सोचते मन में यह फंसें सब बस बातों में.
काठ की पुतली बने रहें इन के हाथों में .
दीप जीरवी   
 होगा तो हर एक संग ,पीड़ा भरा अतीत ,
क्यों रोएँ हम उम्र भर ,करकर याद वो मीत ,
 
कर कर याद वो मीत ,आज में अब में जी लें ,
पीड़ा दे हजार मनवा  में कल की कीलें .
वर्तमान में जी ,भावी निर्माण  तो होगा
कल की कीलो के कारण,दर्द तो होता होगा .
 
दीप जीरवी
 
 
 
 
 नाम रखा के दीप है जलना मेरा काम
आठ प्रहर में निमिष भर ,अब तो नहीं आराम .
अब तो नहीं आराम ,बिना दीदार सजन के .
मन मन्दिर में आन बढाई रे फबन ये .
रसना पर है हर घड़ी ,अब तो श्याम ही श्याम .
धक धक करना भूल ,स्पंदन जपते हैं प्रिय नाम
दीप जीरवी
वर्तमान में जी सखी ,पीड़ा देत अतीत
गुरुजन की वाणी कहे,'मन जीते जगजीत '
मन जीते जगजीत ,अमरवाणी को मान.
मन तू ज्योत स्वरूप है अपना मूल पहचान .
जीवन आग ही नहीं सखी री राग भी जीवन
जीना जीना है तो  जी लें आज में जीवन  .
दीप जीरवी
भावी को ही सोचते चिन्तन करें अतीत
वर्तमान  कन्चन करें,माटी मोल क्यों  क्यों मीत.
माटी मोल क्यों मीत ,हुआ क्या और क्या होगा
अब के पल के लिए कभी क्या है कुछ सोचा ?
 
चिंता चूल्हे चन्दन सी काया क्यों डाली
अतीत गया है बीत ,अरे आती रहे भावी .
दीप जीरवी
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