धनक -THE RAIN BOW

जीवन अनेक रंगों में रंगा मिलता है ;जीवन रंगो में रंगे धनक को सुधि पाठकों के लिए समर्पित करता हूँ ; धन्यवाद DHANAK.THERAINBOW KITAB PAANAY KE LIYE SAMPRK KREIN 9814087063 EMAIL I.D. IS DHANAKTHERAINBOW @GMAIL.COM

13 November, 2013

चलो जी चलो कलम उठाएं;चलो जी चलो कलम उठाएं.

चलो जी चलो कलम उठाएं;
चलो जी चलो कलम उठाएं.
लिख के कविता लेख कहानी,
हम लेखक बन जाएं
तदुपरांत वो बकरा ढूंढें
जिसको लिखा सुनाएं
चलो जी चलो कलम उठाएं.
चलो जी चलो कलम उठाएं.
-०-०-०--०-०-०-०-०-०-०-०-
कागज़ कलम ; डाक खर्चे की ;
पहले युक्ति लगाएं,
लिख लिख रचनाएँ अपनी ;
अख़बारों को भिजवाएं .
खेद सहित लौटी रचनाएँ
अपने दुखड़े सुनाएं
उन रचनाओं को फिर डाक से
और जगह भिजवाएं
चलो जी चलो कलम उठाएं.
चलो जी चलो कलम उठाएं.

मनवा सोचे चलो किसी भी सहित्य सभा में जाएं ;
अपने मिलें बिरादरी वाले ,सुन लें और सुनाएं;
उठा पटक साहित्य सभा की जब मंचित हो जाएं
लौट ओ बुधु चलो तो घर को ,मनुआ जी अकुलाएं.
चलो जी चलो कलम उठाएं.चलो जी चलो कलम उठाएं.

जस तस कर के छपने लागें;तब तृष्णा बढ़ जाएं ;
अब पुस्तक छपवाने को लो लेखक मन अकुलाएं .
प्रकाशक पूँजी मांगे और तिस पर भी इतराएँ .
"दो शब्द" लिखवाने को फिर लेखक दर दर जाएं
चलो जी चलो कलम उठाएं.चलो जी चलो कलम उठाएं.

"दीप" की पुस्तक के बारे में दो शब्द लिख डाले ;
"अहसानों के गठर" लिख ते ही दीप -सर डाले
निज पुस्तक पे उस के एवज गोष्ठी खट से मांगी ;
साहित्य सभा की गोष्टी पर लो दीप जी जेब कटाएँ
चलो जी चलो कलम उठाएं.चलो जी चलो कलम उठाएं.

लेखन लेखक पाठक त्रय का झालम झोल है बन्धु
लेखक प्रकाशक वितरक में टालम-टोल है बन्धु .
पाठक वृन्द भी चाहें ,पुस्तक प्रेम-भेंट ही पाएं
प्रेम भेंट क्र दीजिये तब भी पन्ना न पलटावें
चलो जी चलो कलम उठाएं.चलो जी चलो कलम उठाएं.

दीप जीर्वी

23 April, 2013

aap ki duao ke chaahvaan


21 October, 2012

कुछ दोहे

अपने    अवगुण  मार  के ...आप  अमर  हो  यार .

आपने  जीते  जी  सुनो ..लो  अपने  अवगुण  मार ...दीप ज़िर्वी




मीत  किताबों   का  कभी  ..मूर्ख  ना  रह  पाए .
जहाँ  स्वयम  पभु  आ  बसें ..पाप  कहाँ   आ  पाए ....


......
मित-भाषी  का  बैर  ना  कभी  किसी  से  होए

जैसा  प्राणी आप  हो .. जाने  जग  वो  सोय ...दीप ज़िर्वी
--


भावना  के  बिन  शान्ति  और  शान्ति  बिना  सकून
इक  बिन  दूजा  ना  हो  सके  ज्यों  मांस  के  बिना  नाखून ...दीप ज़िर्वी









-0-
खुद  को  बड़ा  जो  मानते .. या  मनवाते  जो  लोग
इक्क  दिन  वो  ही  ओढते ..बदनामी  और  शोक ...दीप ज़िर्वी







-0-
श्रधा  भाव  का  हो  सदा ..हर  युग  ही  कल्याण .
जा  में  श्रधा  राख्यो . हो  जाएँ  उसी  समान .दीप ज़िर्वी





धन वाले  वो  जो  करें  निर्धन  का  कल्याण .
ऐसे  गुण  बिन  धनी  को  कोष  का  सर्प  हेई  मान
... रे  बन्धु  कोष  का  सर्प  ही  मान ..दीप -ज़िर्वी





न  हो   पुष्पित  वाटिका ..मत  हो  मीत  उदास .

सुरभित   कर  दे  जगत  को .दे  मुस्कान  सुवास ...दीप ज़िर्वी

कर लो बात ..

होते थे कभी रूम घरों में कर लो बात 
सिमटे हैं इक रूम में अब घर कर लो बात ..
यादों में वो मोटा खद्दर आता है 
जिसको पहने गुज़रा था 'कल ',कर लो बात ..
दीप जीरवी-9815524600

09 October, 2012

शब्द भाव लय ताल न ,उस पर हूँ स्वर हीन. शरण गहूँ मां शारदा , रखना ममताधीन .


शब्द भाव लय ताल  न ,उस पर हूँ स्वर हीन.
शरण गहूँ मां शारदा , रखना ममताधीन .

शरण तुम्हारे शारदा ,वन्दौ शारदा मात ;
अभयदान चाहूं सदा ,बसौ सदा ही साथ

वन्दन क्रन्दन दीन का .सुन लो आर्त नाद ;
.मस्तिक में ज्योति जगे ,जाग ज्वाला जाग .

शब्द भाव लय ताल  न ,उस पर हूँ स्वर हीन.
शरण गहूँ मां शारदा , रखना ममताधीन .

दीप ज़ीर्वी