धनक -THE RAIN BOW

जीवन अनेक रंगों में रंगा मिलता है ;जीवन रंगो में रंगे धनक को सुधि पाठकों के लिए समर्पित करता हूँ ; धन्यवाद DHANAK.THERAINBOW KITAB PAANAY KE LIYE SAMPRK KREIN 9814087063 EMAIL I.D. IS DHANAKTHERAINBOW @GMAIL.COM

29 November, 2009

{ नज्म }दीप ज़िरवी


दीप  ज़िरवी

तन्हाई का कैसा यारो फंडा

तन्हाई का कैसा यारो फंडा
कोई कैसे तन्हा भी हो सकता है ?
फूल कही हो खुशबु उसके साथ रहे ,
खुशबू हो जो वो भी हवा के साथ बहे
खुशबु से हम सब का दामन भरता है ,
तन्हाई का कैसा यारो फंडा है ,
कोई कैसे तन्हा भी हो सकता है ?
दिल के साथ है धड़कन ,
आँख के साथ स्वप्न ,
सुखदुख साथ में मिलके बनता है जीवन ।
जीवन धार में मिलके जीवन चलता है ,
तन्हाई का कैसा यारो फंडा है ।
कोई कैसे तन्हा भी हो सकता है ?
दीप के साथ है ज्योति ,
मोती सीप में है
मीठी पीरहा देखिये गीत में है ।
कांटे फूल के साथ हैं
फूल महकता है ।
तन्हाई का कैसा यारो फंडा है
कोई कैसे तन्हा भी हो सकता है ?



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मेरा दिलबर हसीन नही बेशक [गजल ]




मेरा दिलबर हसीन नही बेशक
कोई उस सा कहीं नहीं बेशक .

वो कही की नही है शेह्जादी,
वो है दिल की मेरे खुशी बेशक .

आँखें उसकी न शरबती न सही ,
उस की आँखों में हूँ में ही बेशक .

उसकी आवाज़ में खनक न सही ,
करती है वो मेरी कही बेशक .

दीप बन कर कभी जो मैं आया ,
ज्योति बन कर के वो जली बेशक .
deepzirvi 9815524600


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दिल दिल है शीशा नहीं शीशे से भी नाजुक दिल ।



दिल दिल है शीशा नहीं शीशे से भी नाजुक दिल ।
ये दिल दिल का साथी है ये दिल दिल का है कातिल ।
यार तुम्हारी बात कहू यार तुम्ही तो हो मेरे ।
तुम्ही हो जीवन मेरा ,तुम्ही जीवन का हासिल ।
तेरे
दिल की कहता हू तेरे दिल की सुनता हु
मेरे दिल की जाने न, क्यों हो मुझ से तू गाफिल
deepzirvi@yahoo.co.in


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दिल लगाने की बात करते हो
दिल लुभाने की बात करते हो ।
रात दिन का रहेगा साथ कहो
गम उठाने की बात करते हो
बैठ कर यूँ मेरे रकीब के पास
दिल जलाने की बात करते हो ।
मेरी बात और मैनेचाहा तुम्हे ,
तुम बेगाने सी बात करते हो।
चल के दुनिया के तुम खिलाफ सनम,
kas msanay ki बात करते हो।
आप अहदे वफा निभाओगे
किस जमाने की बात करते हो ।

दीप की लोss बनो गे तुम कैसे
तुम जमाने की बात करते


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अकेला नही हूँ पर तन्हा हूँ

दरया होकर भी प्यासा हूँ ।

मरती चिडिया देखूं रो दूँ ,

बेशक मै सब में हंसता हूँ ।

तू सेठानी बेशक बेशक ,

मैं याचक दर पर आया हूँ ।

दाज के लिए दरवाजे पर

बैठी बेटी का पापा हूँ ।

बूढे बाप के खाली बेटे की

लाश उठाते में हाफा हूँ ।

श्वासों की हूँ आवागमन मैं

लोथ हूँ , लाश हूँ एक गाथा हूँ ।

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18 November, 2009

मेरा दिलबर हसीन नही बेशक ..

मेरा दिलबर हसीन नही बेशक
कोई उस सा कहीं नहीं बेशक .

वो कही की नही है शेह्जादी,
वो है दिल की मेरे खुशी बेशक .

आँखें उसकी न शरबती न सही ,
उस की आँखों में हूँ में ही बेशक .

उसकी आवाज़ में खनक न सही ,
करती है वो मेरी कही बेशक .

दीप बन कर कभी जो मैं आया ,
ज्योति बन कर के वो जली बेशक .
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दिल दिल


दिल दिल है शीशा नहीं शीशे से भी नाजुक दिल ।
ये दिल दिल का साथी है ये दिल दिल का है कातिल ।
यार तुम्हारी बात कहू यार तुम्ही तो हो मेरे ।
तुम्ही हो जीवन मेरा ,तुम्ही जीवन का हासिल ।
तेरे इदल की कहता हू तेरे दिल की सुनता हु
मेरे दिल की जाने न, क्यों हो मुझ से तू गाफिल

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दिल लगाने की बात करते हो


दिल लगाने की बात करते हो
दिल लुभाने की बात करते हो ।
रात दिन का रहेगा साथ कहो
गम उठाने की बात करते हो
बैठ कर यूँ मेरे रकीब के पास
दिल जलाने की बात करते हो ।
मेरी बात और मैनेचाहा तुम्हे ,
तुम बेगाने सी बात करते हो।
चल के दुनिया के तुम खिलाफ सनम,
kas msanay ki बात करते हो।
आप अहदे वफा निभाओगे
किस जमाने की बात करते हो ।

दीप की लोss बनो गे तुम कैसे
तुम जमाने की बात करते

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अकेला नही हूँ पर तन्हा हूँ

अकेला नही हूँ पर तन्हा हूँ

दरया होकर भी प्यासा हूँ ।

मरती चिडिया देखूं रो दूँ ,

बेशक मै सब में हंसता हूँ ।

तू सेठानी बेशक बेशक ,

मैं याचक दर पर आया हूँ ।

दाज के लिए दरवाजे पर

बैठी बेटी का पापा हूँ ।

बूढे बाप के खाली बेटे की

लाश उठाते में हाफा हूँ ।

श्वासों की हूँ आवागमन मैं

लोथ हूँ , लाश हूँ एक गाथा हूँ ।


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15 November, 2009

...ये भी मैं हूँ वो भी मैं ही ..





ये भी मैं हूँ वो भी मैं ही ..
एक बूँद गिरी पर गिरे कभी जो मैं ही हूँ .
एक बूँद धरा पर गिरी कभी जो मैं ही हूँ .
एक बूँद अरिहंता बन गिरी समर-आँगन   में ,
एक बूँद किसी घर गिरी नवोढा नयनन से ,
एक बूँद कही पर चली श्यामल गगनन से '
एक बूँद कहीं पर मिली सागर प्रियतम से ,
वो बूँद बनी हलाहल जानो मैं ही हूँ ,
वो बूँद बनी जो सागर  जानो मैं ही हूँ,
वो बूँद बनी पावन  तन जानो मैं ही था ,
वो बूँद बनी प्यासा मन जानो मै ही हूँ .
हर बूँद बूँद में व्यापक व्याप्त मैं ही हूँ
हर बूँद का मालिक पालक बालक मैं ही हूँ .
मैं सागर बादल कमल दामिनी गंगाजल ;
मैं पर्वत गहन गम्भीर हूँ जैसे विंध्यांचल  .
बिरहन के मन की पीर से भीगा हूँ आंचल ,
मैं कुल ब्रह्मांड की बेटियों का धर्मी बाबुल .
मैं आदि अनादि मैं मध्य हूँ मैं ही हूँ अनंत ;
मै ग्रीष्म शिशिर हेमंत हूँ मै ही हूँ वसंत .
मैं बीज हूँ जड़ भी मैं ही फल फूल भी मैं .
मैं वो हूँ वो मैं ही हूँ जल कूल भी मैं .
मैं ही हूँ वर्ग पहेली ,वर्ग भी शब्द भी मैं .
मैं ही हूँ रस राग रंग का अर्थ भी मैं .
मैं जान अजान का भेद हूँ मैं ही हूँ ज्ञाता...
कुछ समझना बाकी न है , समझ भी न आता .
वो मायापति अकाल दयाल विशाल भी मैं .
वो घुटनों चलता मूढ़ मती जो बाल भी मैं
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सूरजों की बस्ती थी ,जुगनुओं का डेरा है ,
कल जहा उजाला था अब वहां अँधेरा है.
राह में कहाँ बहके ,भटके थे कहाँ से हम ,
किस तरफ हैं जाते हम , किस तरफ बसेरा है.
आदमी न रहते हों बसते हों जहां पर बुत ,
वो किसी का हो तो हो, वो नगर न मेरा है.
रहबरों के कहने पर रहजनों ने लूटा है ,
रौशनी-मीनारों पे ही बसा अँधेरा है .
मछलियों की सेवा को जाल तक बिछाया है ,
आजकल समन्दर में गर्दिशों का डेरा है.
दीप को तो जलना है,दीप तो जलेगा ही ,
रौशनी-अँधेरे का तो रहा बखेडा है

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भ्रमर

भ्रमर
मेरा मन
पतंगे सा कोमल
भ्रमर सा चंचल
अस्थिर
पारे सम
कोशिश करे
कैद करने की
इस मन को तेरा मन
पर
पारे सम
मेरा मन
न हो सके गा स्थिर
न ही
बंदी बन पाए गा कभी
जैसे कि भ्रमर
किसी उपवन का
----
यह भ्रमर नहीं है उपवन का 
भ्रमर है ये मेरे मन का
स्वछन्द
हवा सम
स्व्त्न्त्त्र रहेगा यह
---
दीप जीर्वी


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बिरहा अग्नि



बिरहा अग्नि
सुंदर छटा बिखरी उपवन में
खुशबु भरी मदमस्त पवन में
अजब सोच है मेरे मन में
सजन संग आज मिलन होगा
बलम संग आज मिलन होगा
---
मैं चातक हूँ स्वाति साजन ,
मैं मयूर सावन है साजन ,'
दीप हो तुम तो स्वाति मैं हूँ
जो तुम सीप तो मोती मैं हूँ ,
हूँ मैं चकोर तेरी मेरे चंदा
क्यों चकोर से दूर है चंदा
वन उपवन सब झूम रहा है ,
मस्त पवन भी घूम रहा है
जाने क्यों मेरे नयनों को
दर्द जिगर का चूम रहा है .
जाने क्यों युगों से चातक
स्वाति खातिर घूम रहा है .
------
सावन आया अबकी साजन
मन मयूर पर न झूमा
-----
चातक को बिन स्वाति कुछ न सुहाए
 जैसे.
मनमीत बिना मुझको भी कुछ न भाए
वैसे .
-----
जाने कब उन का दरस होगा
जाने वो कौन दिवस होगा .
दरस करन कि खातिर साजन
खुले है मरकर भी ये नयन .
---
इंतज़ार इतना कौन करे गा
बिरहा की अग्नि में कौन जले गा
---

दीप जीर वी
९८१५५२४६०० 





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-- कल आज और कल



-- कल आज और कल (दीप जीर्वी  )
आज
 जो हालात हैं 
वक्त की मेहरबानी
कल न हम ऐसे थे न हालात
और
न ही कल भी
आज के हालात होंगे .
कल था काला
भयावह सपने की तरह
जिसके
खत्म होते ही
खत्म हुई
न उम्मीदी,
 निराशा,
आज
 विवशता का
नाम ओ निशान नही .
आज सिखाया
गुजरे कल ने
सम्भलना
----
आने वाले कल
सभी देखेंगे
कि
तब का आज
गुजरे कल के आज से
कहीं अधिक उज्ज्वल होगा
.
दीप जीर वी 
 





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एहसान

एहसान
ऐ जिंदगी !
हम एहसान तुझ पर किये जाते हैं
दिल के टुकड़े होने पर भी
उसको पाकर खोने पर भी
मन ही मन रोने पर भी
दर्द जिगर में होने पर भी
ऐ जिंदगी!
हम जिए जाते हैं
हम एहसान तुझ पर किये जाते हैं
{दीप जीरवी}



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14 November, 2009

सुबह

सुबह
उदासी के अँधेरे हटा कर
नई रौशनी फैलाये गी
मेरे मन के वन उपवन में
सबरंग के फूल खिलाये गी
आस कि मासूम कली
नहीं जब मुर्झायेगी
मेरी उम्मीदों की नय्या
लहरों पर समय की .
चलेगी
पर जायेगी'
मन हर्शाएगी;
कभी तो कोई सुबह,
मेरे लिए
ढेर खुशियाँ लेकर आयेगी .
वो सुबह जरूर आयेगी


--
दीप्ज़िर्वि९८१५५२४६००






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