तुम रुको ना कभी पग बढ़ाते चलो ...
मुस्कुराते रहो गुनगुनाते रहो
आंसुओं पे यूँ पर्दा गिराते रहो .
बन के मुरली ही तानें सुनाते रहो ;
छेद तन-मन के सारे छिपाते रहो .
भेद डालों मनोहारी सुर से जगत ;
भेद मन का जो मन में पचाते चलो .
मोहनी बन के हर मन को हरते रहो ;
रह गई पीर अपनी बनाते चलो
तुम चलों तो चले संग धरती गगन ;
तुम रुको ना कभी पग बढ़ाते चलो
दीप जीरवी
आंसुओं पे यूँ पर्दा गिराते रहो .
बन के मुरली ही तानें सुनाते रहो ;
छेद तन-मन के सारे छिपाते रहो .
भेद डालों मनोहारी सुर से जगत ;
भेद मन का जो मन में पचाते चलो .
मोहनी बन के हर मन को हरते रहो ;
रह गई पीर अपनी बनाते चलो
तुम चलों तो चले संग धरती गगन ;
तुम रुको ना कभी पग बढ़ाते चलो
दीप जीरवी
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