धनक -THE RAIN BOW

जीवन अनेक रंगों में रंगा मिलता है ;जीवन रंगो में रंगे धनक को सुधि पाठकों के लिए समर्पित करता हूँ ; धन्यवाद DHANAK.THERAINBOW KITAB PAANAY KE LIYE SAMPRK KREIN 9814087063 EMAIL I.D. IS DHANAKTHERAINBOW @GMAIL.COM

26 September, 2011

मैं भला खुशबू को बुत कर के दिखाऊँ कैसे



इश्क की ज़ात बताएं तो बताऊँ कैसे 
मैं भला खुशबू को बुत कर के दिखाऊँ कैसे .

मैं तुझे और तेरी अदा को जलवे को 

अपनी पलकों में कहो तो यूं समाऊँ कैसे .

रौशनी इश्क गली में नहीं होगी ऐसे ;
दिल जिगर जान कहो मैं भी जलाऊँ कैसे .

पारा है सोच तेरी ,पारसा खुद तू भी नहीं ;

अपना हमराज़ सुनो तुमको बनाऊँ कैसे .

ओ हवा मुझको बता तेरा इरादा क्या है ;

मै तेरे सामने मन दीप जलाऊँ वैसे .. 
दीपजीर्वी 
२७-९-२०११
 







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...वतन वालो !फिर न गिला कीजिएगा

अमीर-ए-शहर ने सोचा है अब के ,गरीबों के दिल की दुआ लीजिये गा ;

मयार-ए-गरीबी बदल कर शहर में ,सभी को अमीर अब चलो कीजिए गा . 

बड़ा दिल है इनका ,बड़ा हौसला है   ,कि आकाश पाताल सा फासला जो  ;

मिटा कर बनाएं तखय्युल क़ी खिचडी ,औ चाहें सभी को खिला दीजिए गा . 

वो तन के जो नंगे ;हैं भूखे ;भिखारी ;जिन्हें खुद बताते रहे ये :बीमारी ;

जिन्हें मार डाला था कामों से अपने ,कहें ये उन्हें अब जला दीजिए गा .

न तन देश का ये समझते हैं अपना ,न 'मन देश का है' ये माना इन्होंने ;

'मगर' के सगे हैं ये मक्कार लोमड ,'समझकर' इन्हें बस मिला कीजिए गा .

जो देखा जो समझा बताया है हमने ,फर्ज़ था हमारा निभाया है हमने ;

मेरी बात को यूं हवा में उड़ाकर,वतन वालो !फिर न गिला कीजिएगा 
दीपजीरवी
२६-९-११

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19 September, 2011

मेरे सर पर सभी इलज़ाम धर दो

मेरे सर पर सभी  इलज़ाम धर दो
खुदाया मुझ पर यह अहसान करदो .
बहुत ममनून हूँगा मैं तुम्हारा ,
मेरी झोली को शोले दान करदो .
दीप जीरवी

13 September, 2011

namn


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09 September, 2011

मोल -हीन सब यह ,बिन 'श्यामल'

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दीप जीरवी
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मृदंग -झांज -मंजीरा -पायल
मन घायल तो सब कुछ घायल
रूआंसे रूआंसे सब हों
गुल-तितली ,गुलशन और कोयल ..
लाख घटाएँ गरजें बरसें ;
चातक तो  पीवे स्वाति जल .
चाँद -घटा- बिजली और बादल;
बिन सांवरिया सब कुछ बेकल .
मन -दर्पण में कोई न झांके ;
हर कोई देखे तन मांसल .
यह फैशन है वो है परचम;
यह भी आंचल,वह भी आंचल
राधा-मीरा-रुक्मणी -भामा;
मोल -हीन सब यह ,बिन 'श्यामल'
-दीप जीरवी

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03 September, 2011

गज़ल

कल रात हम से मिलने, आए वो छुप-छुपा के
बिजली से डर गए थे, लिपटे वो सकपका के .
इक बारगी तो चौंका, देखा वो सामने है
सोचा ,महकता झोंका, ,आता है कब बता के .
ऑंखें झुकी-झुकी सी, जुल्फों के मेघ काले
उस चाँद को थे बैठे ,अपने तले छुपा के .
सांसों में घुल गई थी ,संदल ही बस हमारे ;
मुझे प्यार उसने बख्शा, जब बांसुरी बना के .
लिपटे रहे वो हमसे;जैसे लता तरु से ;
बोले हमे है रहना ,सब फासले मिटा के 
-दीप जीरवी  

02 September, 2011

एक नया इतिहास बनाना लगता है

जागा जागा दर्द, सुहाना लगता है

आया वो ही याद जमाना लगता है .
कुछ लोगों को शाम सुहानी लगती है

मुझ जैसों को चाँद पुराना लगता है .

आग जिगर की लगते लगते लग जाती ,

बुझते बुझते एक जमाना लगता है .

खुशीओं का जमघट जमघट सा दीखता है

शायद फिर से गम को आना लगता है

मन उपवन सूना सूना सा रहता है

मरघट मन को बड़ा सुहाना लगता है .



दिल धडकन के साथ लड़ाई करता है ;

दिल,मुझसा ही कोई दीवाना लगता है .



मछली सागर छोड़; गई सहराओं में,

एक नया  इतिहास बनाना लगता है .
दीप जीरवी

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