मैं भला खुशबू को बुत कर के दिखाऊँ कैसे
इश्क की ज़ात बताएं तो बताऊँ कैसे
मैं भला खुशबू को बुत कर के दिखाऊँ कैसे .
मैं तुझे और तेरी अदा को जलवे को
अपनी पलकों में कहो तो यूं समाऊँ कैसे .
रौशनी इश्क गली में नहीं होगी ऐसे ;
दिल जिगर जान कहो मैं भी जलाऊँ कैसे .
पारा है सोच तेरी ,पारसा खुद तू भी नहीं ;
अपना हमराज़ सुनो तुमको बनाऊँ कैसे .
ओ हवा मुझको बता तेरा इरादा क्या है ;
मै तेरे सामने मन दीप जलाऊँ वैसे ..
दीपजीर्वी
२७-९-२०११
Labels: गजल
0 Comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home