हर तरफ से आ रही कैसी सदा
हर तरफ से आ रही कैसी सदा
चल पड़ी है देखिये कैसी हवा
घुल रही है जिंदगी पलपल मेरी
वो बरस ;बरसों बरस बरसा किया .
धुंधलके में शाम के देखा था कल ;
पल सुनहरा था कोई लटका हुआ .
उस ने काटा सर तो हमने उफ़ न की ;
हम जरा सा छू गए बलवा हुआ .
आपने पहना जो रेशम हो गया ;
मुझको समझा टाट का टुकड़ा है क्या
वो फसाना तेरी उल्फत का हसीन
जैसे कतरा तार पर लटका हुआ .
फासले का फैसला है आपका ;
दीप से पर आपने शिकवा किया
दीपज़ीर्वी
Labels: गजल
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