कोई अगर लाजवाब हो तो ; वो आवे देखे जवाब अपना
दराज़ पलकें ,हसीन चेहरा ,वो दिलकशी और वो जो नजाकत ;
कोई अगर लाजवाब हो तो ; वो आवे देखे जवाब अपना .
न मयकदा कोई रहना बाकी , न मयकशी न कहीं हो साकी;
अगर पलट दे मेरा ये दिलबर ,जरा रुखों से नकाब अपना .
खनकती आवाज़ शीशे जैसी ,लचकती सी चाल हाय रब्बा ;
वो माथे पे झूले नाग बच्ची ;समझ के जुल्फों को नाग अपना .
किसी मुस्स्विर का ख्वाब वो है किसी तस्सवुर की है हकीकत ;
अगर कभी उसको देख ले तो; संवारे रागी रबाब अपना .
अभी मेरे पास वो खडी थी ,अभी मेरे पास वो नही है ;
सदा मेरे साथ साथ चलती ,खिला तस्सवुर में बाग़ अपना.
कोई उसे है आग कहता ,कोई उसे तो है राग कहता ;
कोई संवारे उसे रंगों में,कोई तराशे है ताज अपना .
दीप जीरवी...
कोई अगर लाजवाब हो तो ; वो आवे देखे जवाब अपना .
न मयकदा कोई रहना बाकी , न मयकशी न कहीं हो साकी;
अगर पलट दे मेरा ये दिलबर ,जरा रुखों से नकाब अपना .
खनकती आवाज़ शीशे जैसी ,लचकती सी चाल हाय रब्बा ;
वो माथे पे झूले नाग बच्ची ;समझ के जुल्फों को नाग अपना .
किसी मुस्स्विर का ख्वाब वो है किसी तस्सवुर की है हकीकत ;
अगर कभी उसको देख ले तो; संवारे रागी रबाब अपना .
अभी मेरे पास वो खडी थी ,अभी मेरे पास वो नही है ;
सदा मेरे साथ साथ चलती ,खिला तस्सवुर में बाग़ अपना.
कोई उसे है आग कहता ,कोई उसे तो है राग कहता ;
कोई संवारे उसे रंगों में,कोई तराशे है ताज अपना .
दीप जीरवी...
Labels: गजल
2 Comments:
At October 7, 2010 at 6:52 PM ,
संजय भास्कर said...
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
At October 7, 2010 at 6:55 PM ,
संजय भास्कर said...
मेरि तरफ से मुबारकबादी क़ुबूल किजिये.
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