महक उठेगी रात की रानी
महक उठेगी रात की रानी
तेरी वेणी में सज कर ही.
चंदनिया शीतल हो गी पर
तेरी काया से लग कर ही .
सुमन सुशोभित हों उप वन में
तेरे आँचल के छूते ही
मानस तल पर विविध छटाएं
बिखरें तुम को छू पल भर ही .
मन मयूर करे नृत्य सुहाना
पुलकित होता हर्षाता है
जब छाते हैं कुंतल श्यामल
बस तेरे मुख के नभ पर ही
मन की सीमा से आगे भी
देखो कई असीम गगन हैं
सोच विहग है आतुर पल पल
तेरी वेणी में सज कर ही.
चंदनिया शीतल हो गी पर
तेरी काया से लग कर ही .
सुमन सुशोभित हों उप वन में
तेरे आँचल के छूते ही
मानस तल पर विविध छटाएं
बिखरें तुम को छू पल भर ही .
मन मयूर करे नृत्य सुहाना
पुलकित होता हर्षाता है
जब छाते हैं कुंतल श्यामल
बस तेरे मुख के नभ पर ही
मन की सीमा से आगे भी
देखो कई असीम गगन हैं
सोच विहग है आतुर पल पल
मेरा मन सुख के पथ पर ही .
दीप ज़ीरवी 9815524600
2 Comments:
At November 19, 2010 at 8:20 AM ,
Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...
वाह, अति सुन्दर रचना !
At November 19, 2010 at 8:37 AM ,
Anamikaghatak said...
bahut achhi rachna! badhayee!
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