...वतन वालो !फिर न गिला कीजिएगा
अमीर-ए-शहर ने सोचा है अब के ,गरीबों के दिल की दुआ लीजिये गा ;
मयार-ए-गरीबी बदल कर शहर में ,सभी को अमीर अब चलो कीजिए गा .
बड़ा दिल है इनका ,बड़ा हौसला है ,कि आकाश पाताल सा फासला जो ;
मिटा कर बनाएं तखय्युल क़ी खिचडी ,औ चाहें सभी को खिला दीजिए गा .
वो तन के जो नंगे ;हैं भूखे ;भिखारी ;जिन्हें खुद बताते रहे ये :बीमारी ;
जिन्हें मार डाला था कामों से अपने ,कहें ये उन्हें अब जला दीजिए गा .
न तन देश का ये समझते हैं अपना ,न 'मन देश का है' ये माना इन्होंने ;
'मगर' के सगे हैं ये मक्कार लोमड ,'समझकर' इन्हें बस मिला कीजिए गा .
जो देखा जो समझा बताया है हमने ,फर्ज़ था हमारा निभाया है हमने ;
मेरी बात को यूं हवा में उड़ाकर,वतन वालो !फिर न गिला कीजिएगा
दीपजीरवी
२६-९-११
Labels: गजल
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