एक नया इतिहास बनाना लगता है
जागा जागा दर्द, सुहाना लगता है
आया वो ही याद जमाना लगता है .
कुछ लोगों को शाम सुहानी लगती है
मुझ जैसों को चाँद पुराना लगता है .
आग जिगर की लगते लगते लग जाती ,
बुझते बुझते एक जमाना लगता है .
खुशीओं का जमघट जमघट सा दीखता है
शायद फिर से गम को आना लगता है
मन उपवन सूना सूना सा रहता है
मरघट मन को बड़ा सुहाना लगता है .
दिल धडकन के साथ लड़ाई करता है ;
दिल,मुझसा ही कोई दीवाना लगता है .
मछली सागर छोड़; गई सहराओं में,
एक नया इतिहास बनाना लगता है .
दीप जीरवी
Labels: गजल
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