धनक -THE RAIN BOW

जीवन अनेक रंगों में रंगा मिलता है ;जीवन रंगो में रंगे धनक को सुधि पाठकों के लिए समर्पित करता हूँ ; धन्यवाद DHANAK.THERAINBOW KITAB PAANAY KE LIYE SAMPRK KREIN 9814087063 EMAIL I.D. IS DHANAKTHERAINBOW @GMAIL.COM

28 February, 2012

कविता दोहा सोरठा ,छंद गज़ल और गीत;
तेरे तक आते सभी ,रास्ते ये मनमीत .
रसते ये मनमीत ,सरस सुकुमार सुकोमल .
पल भर भी न हों, कभी धडकन से ओझल
मन-मन्दिर से बहे निरंतर भावुक सरिता .
तू है तू ही तू मेरी सम्पूर्ण कविता .
दीप जीरवी

26 February, 2012

बड़े बड़ाई खुद करे बोलें बड़के -बोल 
'कलयुग' में कंकर कहें लाख तको मोरा मोल .

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ऊंचे पेड़ खजूर के फल लागो अति दूर ;
'कलयुग' मोल खरीद के खाए जात खजूर .
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पलक ढांप तब लेत थे आंखन पिऊ छिपाय;
'कलयुग' उघडे बदन ले अब तितली उड़ जाय.
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बिकती जाने कलम जो महामूर्ख तिन जान .
कलयुग क्या हर युग रहे ,अनमोलक विद्वान .
-
'लक्ष्मी ' 'सरस्वती' से कभी चाकरी न करवाय.

सरस्वती लक्ष्मी से अधिक मान धन पर प् जाए .
--
दीप जीरवी .

भाव निर्झर -१ 
तुम हो मैं हूँ और ख़ामोशी
 झूमते पीपल पेड़ तले ;

चांदनी रात सलोनी महके ,
चुपके छुपके ख्वाब पले.

सरगोशी से हवा नशीली ,
कानों में कुछ बात करे ,

हमको हाथ पकड़ ले जाएँ
 तेरे सपने चाँद-परे.

आँख मिचौनी खेले जब हम ,
 मुझको तेरा साथ मिले 

बरसों बीते इस आशा में 
विश्वासों के दीप जले 

दीप जीरवी 

04 February, 2012

लबों  को  सी  के  भी  ,धूम  मचा  दी  जाये  ; 
चलो  खामोश  रह  के   उन  को  सदा  दी  जाए .1
किया  करते हैं निभाते हैं मुहब्बत कैसे ;
उस हसीन को भी चलो रीत सिखा दी जाये .2
तितली को फूल लगा करते हैं अछे बेशक ;
फूल को चुपके से ये बात बता दी जाए .3
लोग समझे है खता,इश्क मुहब्बत को जहां ;
दिल ये कहता है दिलभर वो खता की जाये.
चाँद है दूर बहुत दूर बहुत दूर सही
बन के चकवा ही चलो उस से वफा की जाए .
मिलके बैठें गे कभी छाँव में जुल्फों की कहीं ;
ख्वाब की छाँव में ये उम्र बिता दी जाए .
दीप जीरवी 

02 February, 2012

आओ हे ऋतू राज स्वागत

आओ हे ऋतू राज स्वागत 
ऋतुओं के सरताज स्वागत .
कलियों पे यौवन  उमड़ा है
फूलों ने खुशबु पहनी है .
बागों में अमुआ फूले हैं 
कोकिल की तरुणाई कू कू 
पीत-वसन-धर आज  स्वागत 
आओ हे ऋतू राज स्वागत 
ऋतुओं के सरताज स्वागत .
हरी ओढ़नी पहने वसुधा 
षोडशी सम सुंदर मनभावन 
दिखते जल थल  नभ    अति     सुंदर
हे जीवन - धर आज स्वागत.
आओ हे ऋतू राज स्वागत 
ऋतुओं के सरताज स्वागत .
 मदन पुष्पधन्वा ले निकला 
रति-कल  मदमाता  सा  है
ये मन कोमल तन मांसल को 
रति -पति अकुलाता सा है
पुष्पधन्वा  धर आज स्वागत 
आओ हे ऋतू राज स्वागत 
ऋतुओं के सरताज स्वागत .
दीप जीरवी