बड़े बड़ाई खुद करे बोलें बड़के -बोल
'कलयुग' में कंकर कहें लाख तको मोरा मोल .
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ऊंचे पेड़ खजूर के फल लागो अति दूर ;
'कलयुग' मोल खरीद के खाए जात खजूर .
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पलक ढांप तब लेत थे आंखन पिऊ छिपाय;
'कलयुग' उघडे बदन ले अब तितली उड़ जाय.
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बिकती जाने कलम जो महामूर्ख तिन जान .
कलयुग क्या हर युग रहे ,अनमोलक विद्वान .
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'लक्ष्मी ' 'सरस्वती' से कभी चाकरी न करवाय.
सरस्वती लक्ष्मी से अधिक मान धन पर प् जाए .
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दीप जीरवी .
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