... याद आता है .
गुलाबों सा हमें गुज़रा ज़माना याद आता है .
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झुकी मदमस्त गहरी कासनी आंखे तुम्हारी वो ;
उन आँखों से तेरा मुझ को , पिलाना याद आता है.
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मज़ा आता है कर कर याद सब लम्हे सुहाने वो;
सुहाने साथ का उल्फत निभाना याद आता है .
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अदा से वो उठी पलकें झुका लेना हया मारे ;
औ धीरे धीरे फिर पलकें उठाना याद आता है .
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गनीमत है अभी पहरा ख्वाबों पे लगा न है ;
ख्यालों में तुम्हे अपना बनाना याद आता है .
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दीप जीरवी २५-३-12
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