कुछ दोहे
अपने अवगुण मार के ...आप अमर हो यार .
आपने जीते जी सुनो ..लो अपने अवगुण मार ...दीप ज़िर्वी
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मीत किताबों का कभी ..मूर्ख ना रह पाए .
जहाँ स्वयम पभु आ बसें ..पाप कहाँ आ पाए ....
......
मित-भाषी का बैर ना कभी किसी से होए
जैसा प्राणी आप हो .. जाने जग वो सोय ...दीप ज़िर्वी
--
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भावना के बिन शान्ति और शान्ति बिना सकून
इक बिन दूजा ना हो सके ज्यों मांस के बिना नाखून ...दीप ज़िर्वी

-0-
खुद को बड़ा जो मानते .. या मनवाते जो लोग
इक्क दिन वो ही ओढते ..बदनामी और शोक ...दीप ज़िर्वी
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-0-
श्रधा भाव का हो सदा ..हर युग ही कल्याण .
जा में श्रधा राख्यो . हो जाएँ उसी समान .दीप ज़िर्वी
धन वाले वो जो करें निर्धन का कल्याण .
ऐसे गुण बिन धनी को कोष का सर्प हेई मान
... रे बन्धु कोष का सर्प ही मान ..दीप -ज़िर्वी
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न हो पुष्पित वाटिका ..मत हो मीत उदास .
सुरभित कर दे जगत को .दे मुस्कान सुवास ...दीप ज़िर्वी
आपने जीते जी सुनो ..लो अपने अवगुण मार ...दीप ज़िर्वी
मीत किताबों का कभी ..मूर्ख ना रह पाए .
जहाँ स्वयम पभु आ बसें ..पाप कहाँ आ पाए ....
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मित-भाषी का बैर ना कभी किसी से होए
जैसा प्राणी आप हो .. जाने जग वो सोय ...दीप ज़िर्वी
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भावना के बिन शान्ति और शान्ति बिना सकून
इक बिन दूजा ना हो सके ज्यों मांस के बिना नाखून ...दीप ज़िर्वी

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खुद को बड़ा जो मानते .. या मनवाते जो लोग
इक्क दिन वो ही ओढते ..बदनामी और शोक ...दीप ज़िर्वी
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श्रधा भाव का हो सदा ..हर युग ही कल्याण .
जा में श्रधा राख्यो . हो जाएँ उसी समान .दीप ज़िर्वी
धन वाले वो जो करें निर्धन का कल्याण .
ऐसे गुण बिन धनी को कोष का सर्प हेई मान
... रे बन्धु कोष का सर्प ही मान ..दीप -ज़िर्वी
न हो पुष्पित वाटिका ..मत हो मीत उदास .
सुरभित कर दे जगत को .दे मुस्कान सुवास ...दीप ज़िर्वी