फिर वतन से ...
[१ ]
फिर वतन से ...
फिर वतन से आई महकी-महकी हवा ..
मन-चमन में छाई महकी-महकी हवा ..
इस हवा में है बहनों का निश्छल मोह
इस हवा में है घुली माँ की आशीष
इस हवा में है बापू की पगडी की चीख .
इस हवे में मेरी भाभियों के मजाक ;
राह तकते हुए सिधूरी सूरज की टीस;
इस हवा में है भाई -बांधव की चाह .
फिर वतन से आई महकी-महकी हवा ..
मन-चमन में छाई महकी-महकी हवा ..
दीप जीर्वी
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deepzirvi9815524600
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Labels: नज्म
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