बडे खामोश रहते हैं अभी हम,

बडे खामोश रहते हैं अभी हम,
सुना है लोग अब भी बोलते हैं .
बडे दिल से लगाकर दिल यहाँ पर ,
सुना है लोग अब दिल तोड़ते हैं
कभी अमुआ की अमराई पे कोयल ,
कुहू कुहु के गाती गीत थी पर ,
'
सुबह की शाख पे बैठी कोयल है ,
नगर में गीत कागा छेडते हैं.
धनक खिलती दिखी थी कल जहां पर ,
आज मरघट सा वो पनघट रुआंसा .
जो बुझाया करे थे प्यास कल तक,
आज वोही क्यों प्यासा छोड़ते हैं
वो सागर रूप के हैं होंगे होंगे ,
कमल तो झील का होता सदा है
हमें अपना बनाने के भरोसे ,
दिला कर खुद भरोसा तोड़ते हैं .
किसी मन्दिर की चौखट पर जलेगा ,
जले गा या किसी मरघट पे फिर भी ,
रहेगा दीप तो हर हाल दीपक ,
जला कर मन-जलाता हैं छोड़ते हैं .
deepzirvi9815524600
Labels: नज्म
1 Comments:
At July 23, 2009 at 5:06 AM ,
ओम आर्य said...
ek khubsoorat rachnaa jisame pyar ki tadapa hai ....sundar bhaawo se sanjoya hai
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