
दीप्काव्यन्जली , अनुभूतियों को शब्दों का कलेवर दे कर कुछ कहने कि आकांक्षा है । कविता को मन में धारण करने वाले सुधि जनो का हार्दिक अभिनंदन ।
१।
मेरा दिलबर हसीन नही बेशक
कोई उस सा कहीं नहीं बेशक ।
वो कही की नही है शेह्जादी,
वो है दिल की मेरे खुशी बेशक ।
आँखें उसकी न शरबती न सही ,
उस की आँखों में हूँ में ही बेशक ।
उसकी आवाज़ में खनक न सही ,
करती है वो मेरी कही बेशक ।
दीप बन कर कभी जो मैं आया ,
ज्योति बन कर के वो जली बेशक ।
दीप जीरवी ९८१५५२४६००
2
दिल दिल है शीशा नहीं शीशे से भी नाजुक दिल ।
ये दिल दिल का साथी है ये दिल दिल का है कातिल ।
यार तुम्हारी बात कहू यार तुम्ही तो हो मेरे ।
तुम्ही हो जीवन मेरा ,तुम्ही जीवन का हासिल ।
तेरे इदल की कहता हू तेरे दिल की सुनता हु
मेरे दिल की जाने न, क्यों हो मुझ से तू गाफिल ।b
3
अकेला नही हूँ पर तन्हा हूँ
दरया होकर भी प्यासा हूँ ।
मरती चिडिया देखूं रो दूँ ,
बेशक मै सब में हंसता हूँ ।
तू सेठानी बेशक बेशक ,
मैं याचक दर पर आया हूँ ।
दाज के लिए दरवाजे पर
बैठी बेटी का पापा हूँ ।
बूढे बाप के खाली बेटे की
लाश उठाते में हाफा हूँ ।
श्वासों की हूँ आवागमन मैं
लोथ हूँ , लाश हूँ एक गाथा हूँ ।
0 Comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home