अभी इश्क के इम्तिहान और भी है ,

अभी इश्क के इम्तिहान और भी है ,
दर्दों के मेले जवां और भी हैं .
नही एक ग़म तेरी फुरकत का जालिम ,
ग़मों वाले मेले यहाँ और भी हैं .
ये पुरनूर चेहरा ये खमदार अबरू
कयामत के जैसे निशाँ और भी हैं .
अभी तो रुको थोडा ठहरो सुनो तो,
कलम के अभी तो बयाँ और भी हैं .
चिरागां की खातिर दिए न जलाओ ,
ये अरमान मेरे यहाँ और भी हैं .
तेरा दिल न होगा क्या बेघर रहेंगे?
जहां मैं हजारों मकान और भी हैं .
कोई दीप जलता हुआ साथ रखना ,
घनेरे अँधेरे यहाँ और भी हैं ..
Labels: नज्म
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