मेरे दिलबर को मेरा

चाँद तन्हा सा प्यासा औ आवारा क्यों हैं ?
हाल उस का भी मुझ सा ही खुदारा क्यों है .
था हमें नाज़ बहुत आपकी दानाई पर ,
तेरी नादानी से ये हाल हमारा क्यों है .
खत नहीं फोन नहीं कोई भी नाता भी नहीं ,
मेरे दिलबर को मेरा दर्द गवारा क्यों है .
मैं ने माना की जुर्म होता है सच का कहना ;
है जुर्म ये तो जुर्म इतना ये प्यारा क्यों है
दीप जल जायेगा जलता ही चला जायेगा ;
तेरा दीवाना फटेहाल बेचारा क्यों है?
Labels: नज्म
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